युधिष्ठर देवड़ा : सेंड स्टोन आर्ट वर्क के सरताज


जोधपुर।
जोधपुर को पत्थरों का शहर कहा जाता है और यहां से निकलने वाला छीतर का पत्थर या सेंड स्टोन अपनी एक अलग ही पहचान लिए हुए है। वर्षों से जोधपुर में छीतर का पत्थर निकल रहा है, लेकिन जोधपुर के छीतर के पत्थर को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली जोधपुर स्टोन पार्क से। मंडोर नौ मील स्थित जोधपुर स्टोन पार्क से व्यवस्थित तरीके से पत्थर निकालकर, पत्थर की कटिंग, डिजाइनिंग, फिनिशिंग आदि की जा रही है, जो देश-विदेश में जोधपुर की शान बढ़ा रहा है। यह ‘सेंड स्टोन’ जोधपुर की खदानों से निकला कुदरत का नायाब करिश्मा है। राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर सहित देश की सैकड़ों इमारतें इस करिश्मे की बानगी है। पहले जहां इस पत्थर का उपयोग केवल भवन निर्माण में किया जाता था, वहीं अब इससे बनने वाली बेमिसाल कलाकृतियों ने वैश्विक फलक पर जोधपुर का इकबाल बुलंद किया है। जोधपुर सेंड स्टोन पार्क के अध्यक्ष युधिष्ठर देवड़ा ने राजस्थान हाईकोर्ट भवन जोधपुर, एफडीडीआई, एम्स सहित कई इमारतों व विभिन्न कलाकृतियों के निर्माण में जोधपुरी सेंड स्टोन का उपयोग इतनी खूबसूरती से किया कि हर तरफ इनकी ही धमक है।
बाबा मार्बल्स के ऑनर युधिष्ठर देवड़ा समाज सेवा में सदा अग्रणी, लेकिन कोई दिखावा नहीं। परमार्थ कार्यों में सदैव सहयोगी लोकेषणा का भाव नहीं। यथोचित त्याग को सदा तत्पर लेकिन अहंकार का नामो-निशान नहीं। सौम्य व्यक्तित्व, शालीन व्यवहार व क्षमाशील सोच के धनी हैं। शहरी पृष्ठभूमि में इनकी सामाजिक जड़ें आज भी संस्कारों से सिंचित है। इन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन को संसार के समर क्षेत्र में अथक परिश्रम, धैर्य और संघर्ष से जीता है। फर्श से अर्श तक का उनका सफर किसी फिल्मी सपने के पूरे होने जैसा ही है कि किस तरह एक स्नातक उत्तीर्ण युवक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से उठकर करोड़ों का कारोबार करने वाले बिजनेस टाइकून बन गया। यह कहानी उन युवाओं के लिए भी नजीर है, जो एक असफलता से घबराकर सोचते हैं कि सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन युधिष्ठर देवड़ा की रीयल स्टोरी उन्हें प्रेरित करेगी कि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…। फिल्म ‘त्रिशूल’ में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया वह सीन उन पर बिल्कुल फिट बैठता है जिसमें अमिताभ बच्चन प्रोपर्टी का एक सौदा करने जाते हैं और कहते हैं कि ‘मैं पांच लाख का सौदा करने आया हूं और मेरी जेब में एक फूटी कौड़ी भी नहीं है।’ कुछ इसी अंदाज में देवड़ा ने बहुत कम उम्र में अपने कारोबार में सफलता के झंडे गाड़कर एक नई इबारत लिख डाली।

आरंभिक सफर
युधिष्ठर देवड़ा का जन्म जोधपुर में चतुरावता बेरा, माता का थान क्षेत्र निवासी लालसिंह देवड़ा के परिवार में किशनसिंह देवड़ा के पुत्र के रूप में हुआ। स्कूली शिक्षा सुनीता बाल निकेतन, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चैनपुरा में हुई। बारहवीं करने के बाद जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में फॉरेन टे्रड में स्नातक किया। एलएलबी में भी एडमिशन लिया, लेकिन किसी कारणवश पूरा नहीं कर पाए। इसी बीच इन्होंने नॉबल आर्ट में जॉब शुरू किया। यहां करीब दो साल कार्य करने के बाद स्वयं का बिजनेस शुरू करने की सोची। हालांकि इनके परिवार में कोई भी शिक्षित नहीं था और न ही बिजनेस से ताल्लुक रखते थे। दादा किसान व पिता मिस्त्री थे, लेकिन अपनी दूरदृष्टि सोच के चलते इन्होंने बिजनेस की एबीसीडी सीखी। देवड़ा बताते हैं कि दसवीं क्रॉस किया तो लाइफ में टारगेट बना लिया था कि चार-पांच साल तक एक रुपया भी नहीं मिले, लेकिन पांच साल बाद कम से कम पचास हजार रुपए आने चाहिए। इसके बाद उसका मल्टीप्लाई होना चाहिए। पहले वुडन व आयरन हैंडीक्राफ्ट का काम किया, लेकिन उस फील्ड में ज्यादा स्कोप नहीं दिखा। इसी दरम्यान इनके रिश्तेदार की फैक्ट्री स्टोन पार्क में लग रही थी। देखने गए तो उन्होंने एक एलबम दिखाया जिसमें सेंड स्टोन के हैंडीक्राफ्ट के काफी आइटम्स थे। माइंड में रिफ्लैक्ट हो गया कि इस दिशा में काम करना चाहिए। रिश्तेदार की फैक्ट्री में काम करते हुए रिश्तेदार के खाली प्लॉट में आर्ट वर्क का कार्य शुरू करने की ठानी और धौलपुर से विशेषज्ञ कारीगर बुलाकर सेंड स्टोन के हैंडीक्राफ्ट आइटम्स बनाते हुए जोधपुर से बाहर प्रोजेक्ट बेस कार्य पर फोकस कर वर्ष 2005 से कार्य आरम्भ किया। सीएनसी कम्प्यूटराइज्ड जाली बनाने की मशीन वर्ष 2009 में पहली बार जोधपुर में लाए। निरंतर नई मशीनों का उपयोग कर कारोबार को आगे बढ़ाया।

ऐतिहासिक इमारतों पर सशक्त हस्ताक्षर
कहते हैं कि जब सपने यथार्थ की जमीन पर कदम रखते हैं तो जमीन आसमान खुशी से झूमने लगते हैं। सफलता के लिए सफलता की कामना और दृढ़ इच्छा शक्ति मुख्य है। उसके साथ-साथ पुरुषार्थ जुड़ जाए तो मुकाम साफ दिखाई देने लगता है। सफलता का रहस्य उस काम में दृढ़ता और मनोयोग पूर्वक जुटे रहना है। तब व्यक्ति की पहचान सूर्य की रश्मियों की तरह खुद-ब-खुद जन-जन तक पहुंच जाती है। इसी फलसफे की त्रिवेणी के बल पर सेंड स्टोन आर्ट वर्क में युधिष्ठर देवड़ा एक नामचीन ब्रांड बन गए। सेंड स्टोन आर्ट वर्क में देवड़ा के प्रारंभिक कार्यों की फेहरिस्त में केयर्न एनर्जी बाड़मेर, होटल कैलाश रेजिडेंसी भोपाल, जेएसडब्ल्यू पावर प्लांट रेजिडेंसी ब्लॉक बाड़मेर, गणेश मंदिर बोरावली मुंबई, गोपाललालजी मंदिर कड़ीकलोल गुजरात, महालक्ष्मी मंदिर अहमदाबाद, शिव मंदिर होजरला अहमदाबाद, आरएचपीपीए के पनोरमा, गोगामेड़ी मंदिर तथा महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में होटल्स सहित जालोर, जैसलमेर, बाड़मेर के कई प्रोजेक्ट शामिल हैं। फिर वे जोधपुर आ गए। यहां इन्होंने पाल रोड फुटपाथ पर सेंड स्टोन जालियां लगाकर जोधपुराइट्स को सेंड स्टोन आर्ट वर्क से रूबरू करवाया। झालामंड में ज्यूडिशियल एकेडमी, हाईकोर्ट व एम्स भवन तथा बाड़मेर में जेएंडडब्ल्यू पावर प्रोजेक्ट ने इनकी काबिलियत को सातवें आसमान पर पहुंचाया। जोधपुर में एफडीडीआई, सूचना केंद्र सहित कई ऐतिहासिक बिल्डिंग्स बनाकर जोधपुरी सेंड स्टोन को नई बुलंदियों पर पहुंचाया। वर्तमान में देवड़ा की सरपरस्ती में छत्तीसगढ़ के रायपुर में ब्रह्मकुमारी आश्रम, कोटा रिवर फं्रट स्मार्ट सिटी कोटा तथा जोधपुर में नगर निगम के पीछे ऑडिटोरियम का निर्माण निश्चित ही नए आयाम स्थापित करेगा।

सेंड स्टोन आर्ट वर्क में 100 फीसद होल्ड
देवड़ा बताते हैं कि उनके यहां जालियां, झरोखे, फाउंटेन, टेबल्स, लैम्प, गमले, पिलर सहित कई उत्पाद सेंड स्टोन से बनाए जाते हैं, जिसकी पूरे विश्व में डिमांड है। विश्व के हर कोने में उनके उत्पाद जोधपुर की धमक जमा रहे हैं। सेंड स्टोन आर्ट वर्क में उनका लगभग 100 प्रतिशत तथा पत्थर बेचने में करीब 15-20 प्रतिशत होल्ड है। इनकी जोधपुर पत्थर की माइंस है एवं स्टोन पार्क में दो फैक्ट्री है जिनमें ब्लॉक कटर, मल्टीकटर, सीएनसी एंग्रेवेन मशीन, सीएनसी पिलर मेकिंग मशीन आदि कई प्रकार की नवीन तकनीक की मशीनें लगी हुई हैं। विभिन्न आर्ट वर्क को यहीं से तैयार कर प्रोजेक्ट्स पर भेजा जाता है। वे कहते हैं कि व्यक्ति में अगर दृढ़ इच्छा शक्ति व कठिन मेहनत करने का जुनून हो तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं। इन्होंने जो कुछ हासिल किया, अपनी मेहनत के बूते ही किया है। जीवन में पत्नी ममता देवड़ा का बहुत सहयोग रहा। उन्होंने हर स्तर पर मोटिवेट किया है। माता-पिता के आशीर्वाद से कठिन से कठिन राह को सुगम बनाते हुए जीवन की कठिन पगडंडी को सर्व सुलभ बना दिया।

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